भारतीय महिलाओं क्यों है साडियों से इतना प्यार
साडी, एक ऐसा शब्द जो हर महिला को पसंद है. चाहे वो कोई हाउसवाइफ हो या कोई कामकाजी महिला या फिर कॉलेज की कोई यंग गर्ल या कोई दादी या नानी. हर कोई चाहता है की कम से कम एक साडी तो उनके पास हो, वैसे एक से मन भरता तो नहीं. और भरे भी कैसे भला, साड़ियों में इतने बेहतरीन रंग और पैटर्न्स होते है की देखनेवाला बस देखता ही रह जाये.
पर आखिर साड़ी भारतीय महिलाओं को इतना क्यों लुभाती है , क्या आपने कभी ये सोचा है? त्योहारों का देश है हमारा, हर त्यौहार के अलग रंग, पर त्योहारों की रंगत अच्छे साड़ियों , अच्छे पहनावों से और खुलती है.
पहले जानते है , आखिर वस्त्रों के इतिहास में सबसे लंबी और पुराने परिधान मे से एक साड़ी का इतिहास क्या है?
साड़ी का इतिहास
साड़ी पुरे विश्व में भारतीय नारी की पहचान मानी जाती है. बॉलीवुडमे पहने गए साड़ियों तो देश और विदेशों मे भी कॉपी की जाती है. पर ये साड़ी आखिर किस ज़माने मे खोजी गयी थी? तो इस के लिए हमें समय मे बोहोत पीछे जाना पड़ेगा, शायद वेदों के ज़माने तक, क्यू की यजुर्वेद में साड़ी शब्द दिखाई देता हैं , यहाँ तक की ऋग्वेद मे भी यज्ञ या हवन के समय विवाहित नारी के लिए साड़ी परिधान की बात कही गयी है. महाभारत मे भी, चीरहरण के प्रसंग में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा द्रौपदी की साड़ी की लम्बाई बढ़ाके उसकी रक्षण करनेका प्रसंग का उल्लेख है.
तो इस हिसाब से शायद ही हम कभी जान पाए की सबसे पहेली साड़ी की खोज किसने की थी , कहा की थी.
साड़ियों में है ये अलग अलग टाइप्स
साडी सिर्फ एक शब्द नहीं , पर महिलाओं के लिए ये भावना सामान है. तभी तो साड़ियों मे इतने अलग अलग टाइप्स होते है की एक से मन भरता ही नहीं. महाराष्ट्र की पैठनी साड़ी , उत्तर प्रदेश की बनारसी साड़ी , मध्य प्रदेश की महेश्वरी साड़ी , तमिलनाडु की कांजीवरम साडी, गुजरात की बांधनी साड़ी , तेलंगाना की पोचमपल्ली साड़ी और भी बोहोत. हर साड़ी अपने अलग रंग और ढंग के साथ मन को मोहती है.
ऐसा लगता है की एक साड़ीसे मन नहीं भरेगा.
भारतीय महिलाओं को साड़ी से क्यू है इतना प्यार
१) परंपरा का सन्मान
भारत मे पुराने समय से साडी को संस्कृति के रूप में देखा जाता रहा है. इस लिए आम महिलओं के परिधान का ये एक आम हिस्सा बन गयी है. इस मे न धर्म का भेद न जात पात का. साडी एक सामान्य घर में उतनी ही पसंद की जाती है जितनी आमिर घर मे.
२) भावनाओं के साथ जुडी होती है साड़ी
साड़ियाँ हम सिर्फ रोजमर्रा की जिंदगी में नहीं पहनते बल्कि त्योहारों में इनकी अपनी एक रंगत और पहचान होती है. पर ऐसी के साथ इनके साथ हमारी अपनी भावनाये भी जुडी होती है. लाइफ की पहेली साडी, शादी की साडी , दादी माँ या माँ की साडी इनका अपना एक अलग अलग महत्व होता है. माँ की साडी तो ओढ़ लो तो माँ के प्यार का अहसास होता रहता है, अपनेपन की खुशबु से दिल महक जाता है. भारतीय नारी के लिए सब साड़ियों का अलग अलग महत्व होता है.
३) साडी है आसान सा पहनावा
देखने में शायद साडी पहनना बोहोत मुश्किल लगे पर साडी एक आसान पहनावा साबित होती आयी है. आप इसे कई तरीके से पहन सकते है और कॉटन जैसी कुछ साड़िया गर्मियों मे बोहोत सुखद होती है साथ ही ये low maintenance भी होती है. धोते समय न ज्यादा ब्रश लगाने की जरुरत न कुछ एक्स्ट्रा देखभाल। भारतीय महिलाये आमतौर की जिंदगी में ऐसी ही आसानीसे मेन्टेन होनेवाली साड़ियाँ पहनना पसंद करती है.
४) त्यौहार का रूप साड़ियों से निखरता है
त्योहारों के दिन साड़ी महिलाओं की आमतौर पर पहेली चॉइस होती है. फंक्शनल साड़ियों मे इतने टाइप्स आते है की देखते जी नहीं भरता, और जब ऐसे पहनके कोई नारी, कान में झुमका, गले मे नेकलेस या माला, साथ मे मंगलसूत्र, माथे पे बिंदिया, हाथोंमें चूड़ियाँ ऐसे सजधज जाती है तो त्योहारों की रंगत और निखर जाती है. आजकल तो साड़ी पे कम से कम ज्वेलरी पहनने का भी ट्रेंड है, पर आप चाहे ज्यादा ज्वेलरी पहनो या कम , साड़ी की तो अपने आप में एक रौनक होती है. इसी लिए ये भारतीय महिलओं को भाती है.
५) साडी impressive होती है
साड़ी आपके किसी जॉब के आड़े नहीं आती यहाँ तक की अगर आप अधिकारी वर्ग की जॉब कर रही है , तो साडी का पहनावा आपके पद को और अच्छा इम्प्रेशन देता है, एलिगेंट लुक देती है. आदर और अंतर ये एकसाथ जतानेवाली साडी शायद एकमात्र पोशाख होगी.
शायद कुछ जॉब्समें साड़ी थोड़ी uncomfortable लगे पर साड़ियों का हमारा प्यार फिर भी कम नहीं होता. दुकान मे या ऑनलाइन शॉपिंग पोर्टल पे किसी मनपसंद साडी को देखे तो यही ख्याल आता है, अभी खरीद लेते है , कब पहनना है ये बाद में सोचेंगे. क्या आप के साथ भी ऐसा होता है?
तो आशा करते है की, हम भारतीय महिलाओं को साड़ी इतनी क्यों पसंद होती है इस बात पे आप हमसे सहमत होंगे. ऐसे ही साड़ियों के लिए हमारा प्यार और कपबोर्ड में नयी नयी साडिया बढ़ती रहे ये आशा और शुभकामनाएँ !