इंसान का शरीर जितना पेचीदा है उतना ही उस का मन भी! बोहोत बार किसी को देखकर हम ये सोचते है की इस इंसान के दिमाग में, मन में क्या चल रहा होगा? काश हमें इस के विचार पता चल जाये तो?
पर क्या हम पहले खुद के विचारों को अच्छे तरीके से जानते है? क्या हम जानते है की वाकई में हम क्या सोच रहे होते है?
क्या हम सकारात्मक (positive thinker) है या नकारात्मक (negative thinker) ?
क्या आप के साथ भी ऐसा होता है?
किसी दिन जब टाइम हो, तो हम अपनी पुरानी अच्छी यादों को याद करते है. उन में खो जाते है. अच्छे लम्हे हमें मुस्कान देते है, कुछ पलके भिगो देते है. पर अचानक एक पल ऐसा आ जाता है, जब हम अच्छा सोचने के बजाय किसी चीज या याद में खामियां ढूंढने लगते है. और हमें पता भी नहीं चलता इतनी जल्दी हम नकारात्मक सोचने लगते है.
कई बार नकारात्मक सोचना मतलब सिर्फ दूसरों का द्वेष करना नहीं होता. जब हम नकारात्मक सोचते है, तो हम अपने खुद के साथ भी न्याय नहीं करते. हम उन्ही सिचुएशन के बारे में बार बार सोचते है, जहा हमें कुछ दर्द मिला, जहा हमसे कुछ छूट गया, कोई नुकसान हुवा, कुछ अफ़सोस हुवा. और खुद को हम बस ‘बिचारे हम’ ऐसी नजरों से देखने लगते है.
हम उन यादों से खुद पर बार बार वार करते है, और खुद दुखी होते जाते है. ऐसा करना हमारे मानसिक स्वास्थ के लिए बेहत हानिकारक है. नकारात्मक सोच से फायदा नहीं होता, बस नुकसान ही होता है.
पर ऐसे नकारात्मक सोचने की प्रक्रिया से उभरे कैसे? क्या करना होगा? क्या ये कठिन होगा?
आप के सारे सवालों के जवाब आप को इस लेख में मिल जायेंगे. यदि इस लेख में दिए तरीके आप अपनाते है तो, नकारात्मक सोच से आप उभर पाएंगे और अपना हर दिन नए तरीके से जी पाएंगे.
Table of Contents
नकारात्मक सोच से कैसे दूर रहे?
पॉज है जरूरी
जब भी हम कुछ सोचते है, तो सोच-विचार की स्पीड इतनी जबरदस्त होती है की हम बस खयालो में खो से जाते है. पर चिंता न करे. इस से बाहर निकलना भी संभव है. बस जरूरत है तो एक “पॉज” की.
जब भी कोई नकारात्मक विचार मन में दस्तक दे, तो तुरंत एक पॉज ले. उस विचार से हमें झगड़ना नहीं है. इस से उसे और बढ़ावा मिलेगा. हमें बस पॉज लेना है, ताकि हम आगे सोचने से रुक सके.
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विचारों का वर्गीकरण करना सीखे
विचारों का वर्गीकरण जिसे हम विचारों को लेबल देना भी कह सकते है. ऐसा करना नकारात्मक सोच से उभरने के लिए काफी सहायता करता है.
पर, विचारों का वर्गीकरण कैसे करे?
उदाहरण के तौर पर अगर आप का कभी किसी के साथ झगड़ा हुवा हो और वो सिचुएशन आप जब भी सोचती है तो आप को तकलीफ होती है और आप सोचती है, “काश मैंने उस वक़त सामनेवाले को ऐसे बोला होता, वैसे बोला होता”, “काश मैं ऐसा कर पाती”, “काश मैं भी उस का किसी तरीके से अपमान कर पाती”.
ये है नकारात्मक सोच. क्यू की, जो घटना हो चुकी है, वो अब कुछ भी सोचने से बदलनेवाली नहीं है.
पर इसी घटना के विचार को अगर आप “हा, झगड़ा हुवा था. इस बारे में मुझे गुस्सा है” ऐसा लेबल दे सके तो आप को थोड़ा सुकून जरूर मिलेगा. इस नकारात्मक विचार को हमने “गुस्सा” ऐसा लेबल दिया.
लेबल देने से इस घटना से जुडी हमारी भावनाये हमारे समझ में आ जाती है और बार बार वो घटना हम सोच के दोहराना कम कर सकते है.
अपनी विचारो के पैटर्न पर गौर करे
जब भी कोई नकारात्मक विचार मन में आते है तो, उस के पैटर्न पर गौर करे. मतलब क्या वो सिर्फ एक विचार है? या आप वो सब उतनी ही तीव्रता से फील करने के लिए खुद को फोर्स कर रहे है?
अगर झगड़े का ही उदाहरण ले तो, “हा, उस दिन उस व्यक्ति से मेरा झगड़ा हुवा” इतना सिंपल विचार मन में आ रहा है? या ” उस दिन झगड़ा हुवा, उस ने मुझे ऐसा कहा, तब मेरी आखों में आँसू आये. फिर और झगड़ा बढ़ा, फिर मुझे और गुस्सा आया, मेरे दिल की धड़कने तेज हो गयी. मेरी आँखें गुस्से से लाल हो गयी”.
अगर आप ऐसा सोच रही है, तो आप वो पल मानसिक रूप से सोच रही है, साथ ही उस वक़्त आप के शरीर ने जो यातना भुगति, जैसे आसु आना, आँखे लाल होना, दिल की धड़कन तेज होना, ये सब दुबारा फील करने को आप अपने शरीर को मजबूर कर रही है. ये सब एक सोच की वजह से! इस लिए ऐसा पैटर्न समझे और इसे वही रोक दे.
अपने विचारों को अंदर से नहीं, बाहर से देखे
जब हम अपने विचारो में डूब जाते है, तो उसी चक्र में हम फस से जाते है और नकारात्मक सोचने लगते है. पर यदि हम हमारे विचारों को बाहर से, दूसरे व्यक्ति के नजरिये से देखने का प्रयास करे तो?
जैसे “हा, इस व्यक्ति का उस व्यक्ति के साथ झगड़ा हुवा था. इस लिए ये व्यक्ति दुखी है, गुस्सा है. पर अब ये सोच के क्या कर लेगा? इस से कुछ फर्क नहीं होगा. “
जब हम किसी और को पुराने झगडे के बारे में सोचते देखते है, तो हम भी शायद यही कहते न? ऐसा ही हमें खुद के विचारों के बारे में करना है.
शुरुवात आसान नहीं होगी, पर ये आपके अच्छे स्वास्थ के लिए जरुरी है. इस से नकारात्मक सोच से उभरने के लिए ताकद मिलेगी.
यदि नकारात्मक सोच का आभास होते ही आप ये तरीके अपनाने का प्रयास करते है, तो पहले दिन से थोड़ी राहत जरूर मिलती जाएगी. और धीरे धीरे आप नकारात्मक सोच से उभर सकेंगे. जब कुछ नकारात्मक नहीं होगा, तो जो होगा वो सकारात्मक ही होगा न !
आशा करते है, नकारात्मक सोच से उभरने के ये तरीके(ways to overcome negative thinking) आप को पसंद आये होंगे. इस जानकारी को अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ जरूर शेयर करे.
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