आजकल इमोशनल ईटिंग ये टर्म आपने काफी बार सुनी होगी. आखिर ये इमोशनल ईटिंग होता क्या है? लोग ऐसा क्यों करते है? अगर इमोशनल ईटिंग की आदत लग गयी है तो इस से निजात कैसे पाए? इन सारे सवालों के जवाब इस लेख में आप को मिल जायेंगे.
Table of Contents
इमोशनल ईटिंग (emotional eating) क्या होता है ?
आमतौर पर हम सुबह नाश्ता, दोपहर में लंच और शाम को डिनर ऐसे खाना खाते है. बिच बिच में किसी को चाय या और कुछ खाने की आदत होती है. पर क्या आप ने कभी अपनी खाने की आदतों पर गौर किया है? क्या आप ने देखा है,की आप खाना कब कब खाते हो , जब भूख लगी हो तब, या जब आप नाराज होते हो, दुखी होते हो तब भी?
इमोशनल ईटिंग का आमतौर पर मतलब है मूड के हिसाब से खाना खाना. कभी ख़ुशी है तो ज्यादा खाना खा लिया, दुःख है तो और भी ज्यादा खाना खा लिया. दुःख है तो जो हमारे लिए अच्छा नहीं ऐसा जंक फ़ूड बोहोत मात्रा में खा लिया.
लेकिन ये इमोशनल ईटिंग शरीर और मन के लिए काफी हानिकारक होता है. इस से वजन तो बढ़ता है, साथ ही दुःख की भावना होने पर खाना खाने का मन करने लगता है, चाहे आप को भूख लगी हो या नहीं. इस से दुःख के कारण को हम समझ नहीं पाते और न ही उसे सुलझा पाते है. बस कुछ भी जंक फ़ूड खाकर उस दुःख को भुलाने की कोशिश करते है.
लोग इमोशनल ईटिंग क्यों करते है?
खाना खाने का सब का अपना अपना तरीका होता है. कई लोग खुश होते है तो ज्यादा अच्छा खाना खाने में रूचि रखते है. कई बार कुछ लोग दुखी होने के कारन खाना पीना छोड़ देते है. पर कई लोग दुःख का अहसास होने पर अपने नियमित आहार से बोहोत ज्यादा खाते है. वे ऐसा इस लिए करते है की, अपने दुःख की भावना को खाना खाकर, ख़ुशी की भावना में बदल सके.
पर ये नजरिया सही नहीं है. इस से फायदा तो नहीं पर नुकसान ही होता है.
क्या आप को भी इमोशनल ईटिंग छुटकारा चाहिए? इमोशनल ईटिंग को रोकने की बात एक दिन की नहीं हो सकती. बस कुछ आदतों में बदलाव कर इसे धीरे धीरे कम किया जा सकता है. और इमोशनल ईटिंग की इस आदत से निजात पायी जा सकती है.
इमोशनल ईटिंग से छुटकारा कैसे पाए
अपने खाने का शेड्यूल बनाये.
अगर आप रोज समय से ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर करने की आदत अपनाती है, तो आप के खाने का एक शेड्यूल बना रहेगा. इस से आप ओवरईटिंग से बची रहेंगी. साथ ही पेट समय से भरा होगा तो, आप की भावनाओं का आप की भूख पर असर होना कम हो जायेगा. बढ़ता वजन भी इस आदत से नियंत्रित किया जा सकता है.
मेन्टल हेल्थ की ये जानकारी आप नयी नारी डिजिटल मैगज़ीन पर पढ़ रहे है.
भूख और इमोशनल ईटिंग में फर्क समझे
खाने से पहले ये जरूर सोच ले की, ये खाना आप असल भूक की वजह से खा रहे है, या आप को क्रेविंग हो रही है या किसी और इमोशन के चलते खा रहे है? जब आप को भूख नहीं होती और फिर भी आप कुछ खाते है, तो वो आप की इमोशनल डिमांड होती है.
इस लिए खाना खाने से पहले असल भूक और इमोशनल डिमांड का फर्क समझे और फिर खाना खाये. अगर आप के खाने का शेड्यूल बना रहेगा तो आप को ये दिक्कत काफी कम आएगी.
मन को तनाव से दूर रखे
इमोशनल ईटिंग का सब से बड़ा कारण तनाव (stress) , वो चाहे काम का हो या ब्रेकअप का! तनाव की भावना को बदलने के लिए इमोशनल ईटिंग से दूर रहे. इस से अच्छा आप मन को तनाव से दूर रखनेवाले तरीके अपनाये. जैसे थोड़ा मेडिटेट करना, जो हुवा है उस परिस्थिति का स्वीकार करना, कुछ अच्छा पढ़ना, कोई हॉबी में ध्यान देना, आदि कर आप इमोशनल ईटिंग से दूर रह सकती है.
किसी प्रोडक्टिव काम पर ध्यान दे
इमोशनल ईटिंग से दूर रहने के लिए किसी हॉबी या किसी प्रोडक्टिव काम (productive work or hobby) पर ध्यान दे. जहा आप को काम करते वक़्त अपना पूरा ध्यान केंद्रित करना पड़े और आप को जंक फ़ूड खाने की बार बार इच्छा न हो.
इस से इमोशनल ईटिंग से भी आप बचे रहेंगे और वजन भी कम करने में मदद होगी.
फ़ूड डायरी लिखे
अपनी इमोशनल ईटिंग की आदत से जल्दी छुटकारा पाने के लिए रोजाना फ़ूड डायरी मेन्टेन करने की आदत मददगार हो सकती है. आप को करना बस ये है की, दिन भर में आप क्या क्या और कौनसे समय पर कहते है, ये उस डायरी में लिखते जाना है.
पानी पिने से लेकर खाने तक आप को सब कुछ उस डायरी में लिखना है. बाद में वो डायरी देखने पर आप को अहसास होगा, की कितनी चीजे हम बेवजह खा रहे है. बस मन किया इस लिए या सामने दिखी इस लिए. इस से इमोशनल ईटिंग का प्रभाव कम करने में काफी सहायता मिलेगी.
ये डायरी आप को आपके ट्रिगर के बारे में भी बताएगी. ट्रिगर मतलब वो चीज या वो भावना जिस से निजात पाने के लिए हम इमोशनल ईटिंग का सहारा लेते है. एक बार ट्रिगर समझ आ गया तो इमोशनल ईटिंग पर कण्ट्रोल करना एकदम आसान हो जायेगा.
आशा करते है, इमोशनल ईटिंग से निपटने के ये उपाय (remedies to overcome emotional eating) आप को अच्छे लगे होंगे. मेन्टल हेल्थ की इस जानकारी को अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ जरूर शेयर करे.
ये भी पढ़े:
रोजाना डायरी लिखे , तो होंगे ये फायदे